मनोरंजक कथाएँ >> चतुर कौन चतुर कौनगीता आयंगर
|
6 पाठकों को प्रिय 276 पाठक हैं |
गीता आयंगर द्वारा प्रस्तुत मजेदार कहानी चतुर कौन.....
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
चतुर कौन
एक दिन प्रातः काल गणपति नाम का एक युवा ब्राह्मण गांव के पास की नदी में
नहाने गया, जैसा कि वह प्रतिदिन किया करता था।
सूरज अभी निकला था और नदी पर अपनी सुनहरी आभा बिखेर रहा था। पानी अभी ठंडा था। गणपति ने स्नान किया और सूर्य देवता की पूजा की।
गणपति ने धोये हुए कपड़ों को निचोड़ कर एक टोकरी में रखा और जंगल में एक खुले स्थान की ओर चल पड़ा। यहाँ वह प्रायः प्रातःकालीन प्रार्थना में भगवान् को अर्पण करने के लिए फूल एकत्र करने जाया करता था। पक्षी प्रसन्नचित्त चहचहा रहे थे और नजदीक ही एक कोने में धोबी का गधा चुपचाप चर रहा था।
गणपति ने जंगली चमेली की सुंदर झाड़ी देखी और उसमें से बहुत से सुन्दर फूल तोड़ लिये। तब वह गुड़हल की तलाश में निर्वृक्ष क्षेत्र के आखिरी किनारे की ओर चल पड़ा। इसके बाद यदि उसे एक साहसी, चुस्त और किशोर शेर नहीं मिला होता तो संभवतया वह घर ही गया।
इस किशोर शेर में अद्मय साहस था। वह सदैव कुछ नया कर दिखाने के चक्कर में रहता था। अपनी बाल्यावस्था में धक्के-मुक्के में वह अपने वंश में सबसे ज्यादा तेज अथवा गुलगपाड़िया शावक था जो सदैव अपने भाई बहनों से झगड़ा किया करता था और मां बाप अक्सर उसे ही डांटते रहते थे। मगर वह ऐसी डांट का कभी भी बुरा नहीं माना करता था। वह झगड़ा करता और हंसते हंसते थप्पड़ खा लिया करता। अब जब वह बालिग हो गया था तो अपनी मर्जी का मालिक स्वयं ही था और कभी भी पैरों पर पानी नहीं पड़ने देता था।
सूरज अभी निकला था और नदी पर अपनी सुनहरी आभा बिखेर रहा था। पानी अभी ठंडा था। गणपति ने स्नान किया और सूर्य देवता की पूजा की।
गणपति ने धोये हुए कपड़ों को निचोड़ कर एक टोकरी में रखा और जंगल में एक खुले स्थान की ओर चल पड़ा। यहाँ वह प्रायः प्रातःकालीन प्रार्थना में भगवान् को अर्पण करने के लिए फूल एकत्र करने जाया करता था। पक्षी प्रसन्नचित्त चहचहा रहे थे और नजदीक ही एक कोने में धोबी का गधा चुपचाप चर रहा था।
गणपति ने जंगली चमेली की सुंदर झाड़ी देखी और उसमें से बहुत से सुन्दर फूल तोड़ लिये। तब वह गुड़हल की तलाश में निर्वृक्ष क्षेत्र के आखिरी किनारे की ओर चल पड़ा। इसके बाद यदि उसे एक साहसी, चुस्त और किशोर शेर नहीं मिला होता तो संभवतया वह घर ही गया।
इस किशोर शेर में अद्मय साहस था। वह सदैव कुछ नया कर दिखाने के चक्कर में रहता था। अपनी बाल्यावस्था में धक्के-मुक्के में वह अपने वंश में सबसे ज्यादा तेज अथवा गुलगपाड़िया शावक था जो सदैव अपने भाई बहनों से झगड़ा किया करता था और मां बाप अक्सर उसे ही डांटते रहते थे। मगर वह ऐसी डांट का कभी भी बुरा नहीं माना करता था। वह झगड़ा करता और हंसते हंसते थप्पड़ खा लिया करता। अब जब वह बालिग हो गया था तो अपनी मर्जी का मालिक स्वयं ही था और कभी भी पैरों पर पानी नहीं पड़ने देता था।
|
लोगों की राय
No reviews for this book